धीरुभाई अंबानी का जन्म 28 दिसंबर 1933, को जूनागढ़ (जो की अब भारत के गुजरात राज्य में है) चोरवाड़ में हिराचंद गोर्धनभाई अंबानी और जमनाबेन के यहाँ बहुत ही सामान्य परिवार में हुआ था। गुजरात जो की एक सामाजिक-धार्मिक समूह है, और पहले उत्तर पश्चिमी भारत का प्रांत था और विभाजन के बाद अब हिन्दुस्तान कि संपत्ति है या हिन्दुस्तान के अधिकार में है। वे एक शिक्षक के दूसरे बेटे थे। कहा जाता है कि धीरुभाई अंबानी ने अपना उद्योग व्यवसाय सप्ताहंत में गिरनार कि पहाड़ियों पर तीर्थयात्रियों को पकौड़े बेच कर किया था। परिवार आर्थिक तंगी से गुजर रहा था, इसलिए धीरूभाई अंबानी केवल हाईस्कूल तक की पढ़ाई पूरी कर पाए और इसके बाद उन्होंने छोटे मोटे काम करना शुरू कर दिया। जब वे सोलह वर्ष के थे तो एडन, यमन चले गए। उन्होंने अ के साथ काम किया। बेस्सी और कं. (A. Besse & Co.) के साथ 300 रूपये के वेतन पर काम किया। दो साल उपरांत, अ.बेस्सी और कं. शेल (Shell) उत्पादन के वितरक बन गए और एडन (Aden) के बंदरगाह पर कम्पनी के एक फिल्लिंग स्टेशन के प्रबंधन के लिए धीरुभाई को पदोन्नति दी गई। उनका कोकिलाबेन के साथ विवाह हुआ और उनको दो बेटे हुए मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) और अनिल अंबानी (Anil Ambani) और दो बेटियाँ नीना कोठारी (Nina Kothari) और दीप्ति सल्गाओकर (Deepti Salgaocar)
1958 में, धीरुभाई भारत वापस आ गए और 15000.00 की पूंजी के साथ रिलायंस वाणिज्यिक निगम (Relianc Commercial Corporation) की शुरुआत की। रिलायंस वाणिज्यिक निगम का प्राथमिक व्यवसाय पोलियस्टर के सूत का आयात और मसालों का निर्यात करना था। वे अपने दुसरे चचेरे भाई चंपकलाल दिमानी (Champaklal Damani), जो उनके साथ ही एडन (Aden), यमन में रहा करते थे, उनके साथ साझेदारी में व्यवसाय शुरू की। रिलायंस वाणिज्यिक निगम का पहला कार्यालय मस्जिद बन्दर (Masjid Bunder) के नर्सिनाथ सड़क पर स्थापित हुयी। यह एक टेलीफोन, एक मेज़ और तीन कुर्सियों के साथ एक 350 वर्ग फुट का कमरा था। आरंभ में, उनके व्यवसाय में मदद के लिए दो सहायक थे। 1965 में, चंपकलाल दिमानी और धीरुभाई अंबानी की साझेदारी खत्म हो गयी और धीरुभाई ने स्वयं का व्यवसाय शुरु की। यह माना जाता है कि दोनों के स्वभाव (temperaments) अलग थे और व्यवसाय कैसे किया जाए इस पर अलग राय थी। जहां पर श्री दमानी एक सतर्क व्यापारी थे और धागे के फैक्ट्रियों/भंडारों के निर्माण में विश्वास नहीं रखे थे, वहीं धीरुभाई को जोखिम लेनेवाले के रूप में जानते थे और वे मानते थे कि मूल्य वृद्धि कि आशा रखते हुए भंडारों का निर्माण भुलेश्वर, मुंबई के इस्टेट में किया जाना चाहिए, ताकि लाभ बनाया जाए/मुनाफा बनाया जाए. 1968 में वे दक्षिण मुंबई (South Mumbai) के अल्टमाउंट सड़क को चले गए। 1960 तक अंबानी की कुल धनराशि 10 लाख रूपये आंकी गयी।
वस्त्र व्यवसाय में अच्छे अवसर का अनुभब होने के कारण, धीरुभाई ने 1966 में अहमदाबाद, नैरोड़ा (Naroda) में कपड़ा मिल की शुरुआत की। पोलियस्टर के रेशों/सुतों का इस्तेमाल कर के वस्त्र का निर्माण किया गया। धीरुभाई ने विमल ब्रांड की शुरुआत की जो की उनके बड़े भाई रमणिकलाल अंबानी के बेटे, विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था। "विमल" के व्यापक विपणन ( Marketing) ने इसे भारत के अंदरूनी इलाकों में एक घरेलु नाम बना दिया। मताधिकार खुदरा विक्रेता केन्द्र की शुरुआत हुयी और वे "केवल विमल" छाप के कपड़े बेचने लगे। 1975 में विश्व बैंक के एक तकनिकी मंडली ने 'रिलायंस टेक्सटाइल्स' निर्माण इकाई का दौरा किया। इकाई की दुर्लभ खासियत यह थी की इसे उस समय में "विकसित देशों के मानकों से भी उत्कृष्ट" माना गया।
वस्त्र व्यवसाय में अच्छे अवसर का अनुभब होने के कारण, धीरुभाई ने 1966 में अहमदाबाद, नैरोड़ा (Naroda) में कपड़ा मिल की शुरुआत की। पोलियस्टर के रेशों/सुतों का इस्तेमाल कर के वस्त्र का निर्माण किया गया। धीरुभाई ने विमल ब्रांड की शुरुआत की जो की उनके बड़े भाई रमणिकलाल अंबानी के बेटे, विमल अंबानी के नाम पर रखा गया था। "विमल" के व्यापक विपणन ( Marketing) ने इसे भारत के अंदरूनी इलाकों में एक घरेलु नाम बना दिया। मताधिकार खुदरा विक्रेता केन्द्र की शुरुआत हुयी और वे "केवल विमल" छाप के कपड़े बेचने लगे। 1975 में विश्व बैंक के एक तकनिकी मंडली ने 'रिलायंस टेक्सटाइल्स' निर्माण इकाई का दौरा किया। इकाई की दुर्लभ खासियत यह थी की इसे उस समय में "विकसित देशों के मानकों से भी उत्कृष्ट" माना गया।
अंबानी को इक्विटी कल्ट/सामान्य शेयर (equit cult) को भारत में प्रारम्भ करने का श्रेय भी दिया जाता है। भारत के विभिन्न भागों से 58,000 से ज्यादा निवेशकों ने 1977 में रिलायंस के आईपीओ (IPO)" Initial Oublic Offering" की सदस्यता ग्रहण की। धीरुभाई गुजरात के ग्रामीण लोगों को आश्वस्त कर सके कि उनके कंपनी के शेयरधारक होने से उन्हें अपने निवेश पर केवल लाभ ही मिलेगा. रिलायंस इंडस्ट्रीज (Reliance Industries) यह विशेषता रखता हैं कि यही एक ऐसा निजी कम्पनी (Private Sector Company) है जिसके कई वार्षिक आम बैठकें (Annual General Meetings) स्टेडियम/मैदानों (stadium) में हुई है। 1986 में, रिलायंस उद्योग की वार्षिक आम बैठक क्रॉस मैदान (Cross Maidan) मुंबई में की गई जिसमे 35,000 शेयरधारकों और रिलायंस के परिवार ने भाग लिया। धीरुभाई बड़ी संख्या में प्रथम खुदरा निवेशकों को संतुष्ट कर सके की वे रिलायंस की कहानी को जाहिर/स्थापित करने के लिए भाग लें और मेहनत से कमाए गए पैसे को रिलायंस टेक्सटाइल आईपीओ में लगायें, यह वादा करते हुए कि उनके विशवास के बदले उनके निवेश पर उन्हें पुख्ता मुनाफा मिलेगा। 1980 तक अंबानी की कुल राशि को 1 बिलियन रुपयों तक आँका गया।
अपने कार्यकाल में, धीरुभाई ने व्यवसाय को प्रमुख विशेषज्ञता के रूप में पेट्रोरसायन (petrochemicals) और अतिरिक्त रुचियों/हितों में दूरसंचार, सुचना प्रोद्योगिकी, उर्जा, बिजली (power), फुटकर (retail), कपड़ा (textile), मूलभूत सुविधाओं की सेवा (infrastructure), पूंजी बाज़ार (capital market) और प्रचालन-तंत्र (logistics) को विविधता प्रदान की। कंपनी को पूर्ण रूप में बीबीसी द्वारा एक व्यावसायिक साम्राज्य जिसका सालाना कारोबार $ 12 बिलियन है और 85,000 मजबूत कार्यबल है के रूप में वर्णित किया गया।
एक बड़े सदमे के बाद धीरुभाई अंबानी को मुंबई के ब्रेच कैंडी अस्पताल में 24 जून, 2002 को भर्ती किया गया। यह दूसरा सदमा था, पहला उन्हें फरवरी 1986 नयूब वे एक हफ्ते के लिए कोमा की स्थिति में थे। डॉक्टरों की एक समूह उनकी जान बचाने में कामयाब न हो सके। उन्होंने 6 जुलाई 2002, रात के11:50 के आसपास अपनी अन्तिम सांसें लीं। (भारतीय मानक समय)
उनके अन्तिम संस्कार न केवल व्यापारियों, राजनीतिज्ञों और मशहूर हस्तियों ने शिरकत की वरन हजारों आम लोगों ने भी भाग लिया। उनके बड़े बेटे मुकेश अंबानी (Mukesh Ambani) ने हिंदू परम्परा के अनुसार अन्तिम संस्कारों को पूरा किया। उनका अन्तिम संस्कार, 7 जुलाई 2002 को मुंबई के चंदनवाडी शवदाहगृह में करीब शाम के 4:30 बजे (भारतीय मानक समय) किया गया।
धीरुभाई अंबानी ने अपनी लम्बी यात्रा बॉम्बे के मूलजी-जेठा कपड़े के बाज़ार से एक छोटे व्यापारी के रूप में शुरू की। इस महान व्यवसायी के आदर के सूचक/चिह्न के रूप में, मुंबई टेक्सटाइल मर्चेंट्स' ने 8 जुलाई 2002 को बाज़ार बंद रखने का निर्णय लिया। धीरुभाई के मरने के समय, रिल्यांस समूह की सालाना राशि (Rs.) 75,000 करोड़ या USD $ 15 बिलियन. 1976-77, रिल्यांस समूह की सालाना राशि 70 करोड़ रूपये थे और ये याद रखा जाना चाहिए की धीरुभाई ने ये व्यवसाय केवल 15, 000(US$350) रूपये से शुरू की थी।
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